من أجل دينارين!! - حمد العصيمي
هي نداءات متكررة منه فقال صارخا ً
                                                                    يا سيدي ..يا سيدي.. يا سيدي..
                                                                    ألأجلِ دينارين ِ تقطعُ لي يدي!!
                                                                    ألأجل ِ دينارين ِ تنشر ُ صورتي!!
                                                                    أتريد ُ كل الناس ِ أن يتمتعوا ..
                                                                    ببطولتي!!
                                                                    أنا كم خدمتك َ با اليد ِ اليمنى
                                                                    اللتي..
                                                                    سرقتك َ شيئا ً تافها ً يا سيدي!
                                                                    نام َ الجميع ُ ولم يعد غيري هنا
                                                                    يقظا سواك..
                                                                    لا أذن تسمعنا ولا عين تراني
                                                                    أو تراك..
                                                                    هذي يداي وما أخذت ُ فأين َ
                                                                    ما أخذت يداك؟!!
                                                                    أنا مذ خدمتك اه ِ منك َ..
                                                                    وخدمتي..
                                                                    ما كنت ُ أحرص ُ أن أغير َ هيئتي..
                                                                    ما كنت ُ مهتما ً بقص ِ شواربي
                                                                    أو لحيتي..
                                                                    أنا ما اخذت لكي أبدل َ كنزتي!
                                                                    فانظر فهذي كنزتي..
                                                                    أنا ما سرقت ُ لكي أغير َ بدلتي!
                                                                    فانظر فهذي بدلتي!
                                                                    أنا ما ارتكبت ُ جريمتي..
                                                                    كي أشتري عقدا ً أزين ُ فيه ِ
                                                                    جيد َ حبيبتي!!
                                                                    أنا كل ُ ما في الامر ِ أني كنت ُ
                                                                    في الصالون ِ أشرب ُ قهوتي!
                                                                    فصباحي َ المعتاد يبدأ من فناجيني..
                                                                    ووجه ِ جريدتي..
                                                                    وسمعت ُ صوتا ًً قادماً من حجرتي..
                                                                    هو صوتها ! لا غير َ أطفالي هناك َ
                                                                    وزوجتي!!
                                                                    تبكي وتحمل ُ في يديها طفلتي..
                                                                    ذات السنين الخمس والداء العضال
                                                                    يهد ُ قلب َ بنيتي!!
                                                                    أتريد ُ أن أبقى أشاهد كيف َ تذبل ُ
                                                                    وردتي؟!!
                                                                    يكفي فقد سقطت ورود ُ أربع ٌ من ياسمين ِ
                                                                    حديقتي!!
                                                                    ها قد عرفت َ حكايتي
                                                                    يا سيدي..
                                                                    ألأجل ِ دينارين ِ تقطع ُ لي يدي؟!!
                                                                    نام َ الجميع ُ ولم يعد غيري هنا
                                                                    يقظا ً سواك..
                                                                    لا أذن تسمعنا ولا عين تراني أو تراك..
                                                                    هذي يداي وما أخذت ُ فأين َ ما أخذت
                                                                    يداك؟!!
                                                                    فاحكم أسارق درهمين كمثل ِ من سرقوا
                                                                    غدي؟!!